Tripindi means Pinddaan of our forefathers of previous 3 generations. If anyone in the family from the previous 3 generations has passed away in very young age or old age then those people cause problems to us. To let the people free one has to do Tripindi Shraddha.
Tripindi Shradha is a contribution in the memory of the dear departed. If for three continuous years the contributions are not made to the dear departed then the dead gets angry, so to calm them these contributions are made.
Most people have an idea that Tripindi means satisfying 3 generation forefathers (Father-mother, Grandfather-Grandmother and Great Grandparents). But this does not reveal with the 3 generations. They indicate ‘Asmadkule’,’Matamaha’ and brothers house, In-lows house and in the Teacher’s family. Any soul who is not convinced in his life and passed away, such soul troubles the future generations. Such a soul can be sent to eternalspirits with the help of ‘Tripindi Shradha’.
त्रिपिंडी श्राद्ध का अर्थ है पिछली तीन पीढ़ियों के हमारे पूर्वजों के पिंड दान। अगर पिछली तीन पीढ़ियों से परिवार में यदि किसी का भी बहुत कम उम्र या बुढ़ापे में निधन हो गया हो। तो वे लोग हमारे लिए समस्या पैदा करते हैं। उन लोगों को मुक्त अथवा उनकी आत्मा की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करना पड़ता है। प्रियजनों लोगों की याद में त्रिपिंडी श्राद्ध एक योगदान मन जाता है । ऐसा माना जाता है की यदि लगातार तीन वर्षों तक यह योगदान नहीं किया गया तो वे प्रियजन (मृतक) क्रोधित हो जाते है । इसलिए उन्हें शांत करने के लिए ये योगदान किए जाते हैं।
त्रिपिंडी श्राद्ध एक ऐसा अनुष्ठान है जो परिचित और भौतिक चीजों की तरह कुछ हासिल करने के लिए किया जाता है। इसलिए त्रिपिंडी श्राद्ध को “काम्य श्राद्ध” कहा जाता है। श्राद्धकर्मकर्ता शास्त्र के अनुसार, यह कहा जाता है कि पुरखों का श्राद्ध एक वर्ष में 72 बार किया जाना चाहिए। यदि श्राद्ध कई वर्षों तक नहीं किया जाता है तो (माता -पिता, दादा -दादी ) पूर्वजों की आत्मा दुखी रहती है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने पूर्वजों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। यदि श्राद्ध अनुष्ठान नहीं किया जाता हैतो। वंशज को पूर्वज दोष के कारण विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । और इस प्रकार के दोष “त्रिपिंडी श्राद्ध” से अनुष्ठान करना पड़ता है।
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